Monday, August 27, 2007

दोस्त का कन्धा

मुझे पता है , शायद अपको भी पता हो , सुख होता है जन्म से श्रपित अपनी अकाल मृत्यु के लिए , और दुःख खोज ही लेता है उस घर को जिसे हम बनाते है अपने सुख के लिए । आज कल की प्रोफेशनल लाइफ मे बस दो मिनट का कामॅशियल ब्रेक काफी माना जाने लगा है , हादसों को भुलाने के लिए । जबकि उनकी टीस उम्र भर रहती है हमारे दिल में। और कभी-कभी ढ़ुंढ़ने पर भी सारे शहर में भी दिखाई नहीं देता वो दोस्त जो कुछ देर के लिए दे सके अपना कन्धा रोने के लिए ।

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